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Thursday, July 15, 2010

FIFA-1970

1970 फीफा विश्व कप (31 मई - 21 जून)

विजेता: ब्राजील
अक्टूबर 1970 में मैक्सिको को विश्व कप के नौवें संस्करण की मेजबानी दी गई। एक बार फिर कुल 16 टीमों ने विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया। इस टूर्नामेंट में कुल 32 मैच खेले गए और इस दौरान कुल 95 गोल ठोंके गए। हर बार की तरह इस बार भी 16 टीमों को चार ग्रुप में बांटा गया था। सोवियत यूनियन, बेल्जियम, मैक्सिको और सल्वाडोर पहले ग्रुप में शामिल थे। दूसरे ग्रुप में इटली, उरुग्वे, स्वीडन और इजराइल शामिल थे। ब्राजील, इंग्लैंड, रोमानिया और चेकोस्लोवाकिया की टीमें तीसरे ग्रुप में थीं जबकि जर्मनी, पेरू, बुल्गारिया और मोरक्को को चौथे ग्रुप में रखा गया। सोवियत यूनियन, उरुग्वे, ब्राजील, पेरू, इटली, मैक्सिको, जर्मनी और इंग्लैंड की टीमों ने क्वार्टर फाइनल तक जगह बनाई। लेकिन सेमीफाइनल की जंग तक उरुग्वे, ब्राजील, इटली और जर्मनी की टीमें ही पहुंच पाई। पहले सेमीफाइनल में ब्राजील ने जबर्दस्त प्रदर्शन करते हुए 3-1 से जीत दर्ज की। ब्राजील फुटबाल खिलाड़ी पेले का ये आखिरी विश्व कप था और टीम उन्हें खिताब के साथ विदा करना चाहती थी। दूसरे सेमीफाइनल में इटली ने जर्मनी को 4-3 से हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया। खिताबी मुकाबले में ब्राजील ने हर क्षेत्र में इटली को मात दी और मुकाबला 4-1 से जीतकर तीसरा विश्व कप खिताब अपनी झोली में डाल लिया।

FIFA-1974

1974 फीफा विश्व कप (13 जून - 7 जुलाई)

विजेता: जर्मनी
1974 में खेले गए विश्व कप के ग्यारहवें संस्करण के लिए कुल 98 देशों ने क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में हिस्सा लिया, जिसमें से 16 टीमों विश्व कप के लिए अपना टिकट कटाया। वेस्ट जर्मनी में होने वाले इस विश्व कप में 38 मैचों में 97 गोल देखने को मिले। इस विश्व कप तक फीफा विश्व कप का जादू पूरे विश्व में छा गया था। दुनिया भर से 1,774,022 लोग फुटबाल विश्व कप देखने पहुंचे। पहले ग्रुप में वेस्ट जर्मनी, चिली, आस्ट्रेलिया और ईस्ट जर्मनी ने शिरकत की। यूगोस्लाविया, ब्राजील, स्काटलैंड और जैरे की टीमें दूसरे ग्रुप में थीं। हालैंड, स्वीडन, बुल्गारिया और उरुग्वे तीसरे ग्रुप में मौजूद थीं, जबकि पोलैंड, अर्जेंटीना, इटली और हैती चौथे ग्रुप में एक दूसरे के सामने थे। क्वार्टर फाइनल तक हालैंड, ब्राजील, ईस्ट जर्मनी, अर्जेंटीना, वेस्ट जर्मनी, पोलैंड, स्वीडन और यूगोस्लाविया ने जगह बनाई। सेमीफाइनल का मुकाबला ब्राजील, पोलैंड, हालैंड और वेस्ट जर्मनी इन चारों टीमों के बीच हुआ। हालैंड और वेस्ट जर्मनी ने फाइनल तक का सफर तय किया। खिताबी जंग में वेस्ट जर्मनी ने हालैंड को 2-1 से हराकर दूसरी बार विश्व कप खिताब हासिल किया।

FIFA-1978

1978 फीफा विश्व कप (1 जून - 25 जून)

विजेता: अर्जेंटीना
1978 में फुटबाल विश्व कप का आयोजन अर्जेंटीना में किया गया था। इससे पहले 1970 में भी अर्जेंटीना को मेजबानी का मौका मिला था, लेकिन मैक्सिको में 1968 के ओलंपिक खेलों में नए फुटबाल स्टेडियम बनने के कारण विश्व की मेजबानी मैक्सिको को ही दे दी गई। इस विश्व कप में कुल 38 मैच खेले गए जिनमें 102 गोल ठोंके गए। एक जून 25 जून तक चले मुकाबलों में कई दिग्गज टीमें विश्व कप के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाईं थी, जिसमें इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया और सोवियत यूनियन प्रमुख टीमें थीं। इटली, अर्जेंटीना, फ्रांस और हंगरी पहले, पोलैंड, वेस्ट जर्मनी, तूनिसिया और मैक्सिको दूसरे, आस्ट्रिया, ब्राजील, स्पेन और स्वीडन तीसरे और पेरू, हालैंड, स्काटलैंड और ईरान चौथे ग्रुप में शामिल थीं। क्वार्टर फाइनल तक हालैंड, इटली, वेस्ट जर्मनी, आस्ट्रिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, पेरू और पोलैंड की टीमें पहुंच सकीं। जबर्दस्त मुकाबलों के बाद सेमीफाइनल में ब्राजील, इटली, अर्जेंटीना और हालैंड की टीमें ही जगह बना सकीं। फाइनल में अर्जेंटीना और हालैंड पहुंचे, जबकि ब्राजील और इटली के बीच तीसरे स्थान के लिए मुकाबला हुआ। फाइनल में मेजबान अर्जेंटीना ने हालैंड को 3-1 से हराकर पहली बार विश्व कप का खिताब अपने नाम किया। वहीं ब्राजील 2-1 से इटली को हराकर तीसरे पायदान पर काबिज हो गया।

FIFA-1882

1982 फीफा विश्व कप (13 जून - 11 जुलाई)

विजेता: इटली
 1982 में खेले गए फुटबाल विश्व कप की मेजबानी स्पेन को मिली। 13 जून से 11 जुलाई तक चले इस विश्व कप में पहली बार 16 से ज्यादा टीमों ने हिस्सा लिया। इस बार विश्व का मुकाबला था 24 टीमों में। इन 24 टीमों को छह ग्रुप में बांटा गया। हर ग्रुप में चार-चार टीमें शामिल थीं। इस संस्करण में कई नई टीमें शामिल हुईं जबकि कई दिग्गज टीमों को क्वालिफिकेशन राउंड में ही बाहर का रास्ता देखना पड़ा। अल्जीरिया, कैमरून, होंड्यूरस, कुवैत और न्यूजीलैंड की टीमें पहली बार फुटबाल विश्व कप का हिस्सा बनीं। वहीं हालैंड, मैक्सिको और स्वीडन की टीमें विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने में सफल नहीं हो पाईं। 24 में से 12 टीमों ने दूसरे दौर में जगह बनाई। इनमें पोलैंड, सोवियत यूनियन, बेल्जियम, वेस्ट जर्मनी, इंग्लैंड, स्पेन, इटली, ब्राजील, अर्जेंटीना, फ्रांस, आस्ट्रिया और आयरलैंड की टीमें शामिल थीं। इन टीमों को चार ग्रुप में बांटा गया और हर ग्रुप में तीन- तीन टीमें मौजूद थीं। इनमें से सेमीफाइनल में पोलैंड, इटली वेस्ट जर्मनी और फ्रांस की टीमें पहुंची। इटली और वेस्ट जर्मनी के बीच खिताबी भिड़ंत हुई जिसमें इटली ने तीसरे बार खिताब अपने नाम कर लिया। फाइनल मुकाबले में इटली ने वेस्ट जर्मनी को 3-1 से करारी शिकस्त दी।

FIFA-1986

1986 फीफा विश्व कप (31 मई - 29 जून)

विजेता: अर्जेंटीना
फीफा विश्व कप के तेरहवें संस्करण का आयोजन 1986 में मैक्सिको सिटी में हुआ। एक बार कुल 24 टीमों ने विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया। इस विश्व कप के आयोजन की जिम्मेदारी पहले कोलंबिया की थी। लेकिन वित्तीय कारणों से कोलंबिया 1982 में आयोजन ना लेने का फैसला किया। मई 1983 में इसकी जिम्मेदारी मैक्सिको सिटी को सौंप दी गई। इस विश्व कप में 52 मैच खेले गए और 132 गोल ठोंके गए। पहले दौर में 24 टीमों के घमासान के बाद दूसरे दौर में 16 टीमों ने जगह बनाई। जिनमें ब्राजील, पोलैंड, फ्रांस, इटली, मोरक्को, वेस्ट जर्मनी, मैक्सिको, बुल्गारिया, अर्जेंटीना, उरुग्वे, इंग्लैंड, पैरागुए, सोवियत यूनियन, बेल्जियम, डेनमार्क और स्पेन की टीमें शामिल थीं। क्वार्टर फाइनल में ब्राजील, फ्रांस, वेस्ट जर्मनी, मैक्सिको, अर्जेंटीना, इंग्लैंड, बेल्जियम और स्पेन ने प्रवेश किया। सेमीफाइनल तक फ्रांस, वेस्ट जर्मनी, अर्जेंटीना और बेल्जियम ही पहुंच पाईं। पहले सेमीफाइनल में वेस्ट जर्मनी ने फ्रांस को मात दी तो वहीं दूसरे सेमीफाइनल में अर्जेंटीना ने बेल्जियम को धूल चटाई। फाइनल में वेस्ट जर्मनी और अर्जेंटीना के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। अर्जेंटीना 3-2 से वेस्ट जर्मनी को हराकर दूसरी बार बन गया विश्व विजेता।
1990 फीफा विश्व कप (8 जून - 8 जुलाई)

विजेता: जर्मनी
 
फीफा ने 1990 में होने वाले विश्व कप की मेजबानी की जिम्मेदारी इटली को सौंपी। इस बार कोस्टा रीका, रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात तीन ऐसी टीमें थीं, जिन्होंने पहली बार विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया। मैक्सिको और चिली को टूर्नामेंट से बाहर कर दिया गया था। वहीं अमेरिका और मिस्र लंबे समय बाद विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने में सफल हुए। एक बार फिर 24 टीमों के बीच विश्व कप के लिए जंग शुरू हो गई। 52 मैचों में 115 गोल दागे गए। आठ जून से आठ जुलाई तक चले विश्व कप में इटली के सल्वातोर शिलैकी को सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया, सल्वातोर के नाम पूरे टूर्नामेंट के दौरान छह गोल थे। क्वार्टर फाइनल में इटली, रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड, यूगोस्लाविया, अर्जेंटीना, वेस्ट जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, इंग्लैंड और कैमरून ने क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया। जबकि इटली, अर्जेंटीना, वेस्ट जर्मनी और इंग्लैंड सेमीफाइनल तक पहुंच सके। पहले सेमीफाइनल में इटली और अर्जेंटीना के बीच जबर्दस्त टक्कर हुई। मैच पेनल्टी शूटआउट तक पहुंचा और अर्जेंटीना ने इटली को 4-3 से मात दी। दूसरा सेमीफाइनल भी पेनल्टी शूटआउट तक पहुंचा और वेस्ट जर्मनी ने इंग्लैंड को 4-3 से हराकर फाइनल में जगह बनाई। फाइनल में सिर्फ एक गोल हुआ और वो हुआ वेस्ट जर्मनी की तरफ से। वेस्ट जर्मनी के अन्द्रेस ब्रेह्मो ने 85वें मिनट में गोल दागकर जर्मनी को तीसरा खिताब दिलाया। जबकि पूरे फाइनल मैच के दौरान अर्जेंटीना वेस्ट जर्मनी की मजबूर रक्षा पंक्ति को भेद नहीं पाया।

FIFA-1994

1994 फीफा विश्व कप (17 जून - 17 जुलाई)

विजेता: ब्राजील
1994 में पहली बार फीफा ने विश्व कप के आयोजन की जिम्मेदारी अमेरिका को सौंपी। अमेरिका में 17 जून से 17 जुलाई तक चले विश्व कप कुल 52 मैच हुए और इस दौरान कुल 141 गोल दागे गए। ग्रीस, नाइजीरिया और सऊदी अरब ने पहली बार विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया। पहली बार वेस्ट जर्मनी और ईस्ट जर्मनी ने एक देश के रूप में हिस्सा लिया। 24 टीमों में से 16 टीमें नॉकआउट राउंड तक पहुंची, जिनमें से रोमानिया, स्वीडन, ब्राजील, हालैंड, जर्मनी, बुल्गारिया, इटली और स्पेन ने क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया। ब्राजील ने हालैंड को हराकर, स्वीडन ने रोमानिया को हराकर, बुल्गारिया ने जर्मनी को हराकर और इटली ने स्पेन को हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई। पहले सेमीफाइनल में ब्राजील ने स्वीडन को 1-0 से हराकर फाइनल का टिकट कटाया। तो वहीं दूसरे सेमीफाइनल में इटली ने बुल्गारिया को 2-1 से हराकर बाहर का रास्ता दिखाया। फाइनल में इटली और ब्राजील के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिला। अगर इसे फुटबाल इतिहास का सबसे रोचक फाइनल मुकाबला कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। टाइम आउट होने तक दोनों टीमों के नाम एक भी गोल नहीं था। लिहाजा फैसला पेनल्टी शूट आउट तक पहुंच गया। ब्राजील ने 3-2 से जीत दर्ज कर चौथी बार खिताब अपने नाम कर लिया। इसी के साथ ब्राजील एकमात्र ऐसी टीम बन गई जिसके नाम चार विश्व कप के खिताब थे।
1998 फीफा विश्व कप (10 जून - 12 जुलाई)

विजेता: फ्रांस
1998 में फुटबाल का नशा पूरे विश्व चढ़ कर बोल रहा था। इस बार मेजबानी फ्रांस के नाम थी। 10 जून से 12 जुलाई तक चले इस विश्व कप में पहली बार 32 टीमों ने क्वालीफाई किया। आठ ग्रुप बने और आठों ग्रुप में चार- चार टीमें रखीं गई। क्रोएशिया, जमैका, जापान और दक्षिण अफ्रीका चार ऐसी टीमें थीं जिन्हें पहली बार विश्व कप में खेलने का मौका मिला। पहली बार विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने वाली क्रोएशिया ने अपने खेल से सबका दिल जीत लिया, क्रोएशिया चौथे पायदान पर रही। ब्राजील, डेनमार्क, हालैंड, अर्जेंटीना, इटली, फ्रांस, जर्मनी और क्रोएशिया ने क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई। ब्राजील, हालैंड, फ्रांस और क्रोएशिया ने सेमीफाइनल में प्रवेश किया। मेजबान फ्रांस ने एकतरफा फाइनल मुकाबले में ब्राजील को 3-0 से धूल चटाई। क्रोएशिया के डैवोर सुकर को गोल्डन शूज मिले जबकि ब्राजील के रोनाल्डो के नाम गोल्डन बॉल का अवार्ड रहा।

FIFA-2002

2002 फीफा विश्व कप (31 मई - 30 जून)

विजेता: ब्राजील
कोरिया रिपब्लिक और जापान ने 2002 विश्व के आयोजन की जिम्मेदारी ली। 31 मई से 30 जून तक चले फुटबाल विश्व कप की इस जंग में 64 मैच खेले गए। जिनमें कुल 161 गोल दागे गए। जर्मनी, अमेरिका, स्पेन, कोरिया रिपब्लिक, इंग्लैंड, ब्राजील, सेनेगल और टर्की ने क्वार्टर फाइनल में पहुंच गए। जिनमें से जर्मनी, कोरिया रिपब्लिक, ब्राजील और टर्की ने सेमीफाइनल तक का टिकट कटा लिया। पहले सेमीफाइनल में जर्मनी ने मेजबान कोरिया रिपब्लिक को 1-0 से हराकर फाइनल में जगह बनाई तो दूसरे सेमीफाइनल में ब्राजील ने भी टर्की को 1-0 से ही मात दी। ब्राजील और जर्मनी के बीच खिताबी मुकाबला हुआ। जर्मनी पूरे मैच के दौरान ब्राजील की रक्षा पंक्ति नहीं भेद पाया तो वहीं ब्राजील ने जर्मनी की रक्षा पंक्ति में दो बार सेंध लगाई और पांचवीं बार खिताब अपनी झोली में डाल लिया। ब्राजील के ही रोनाल्डो को गोल्डन शूज के अवार्ड से नवाजा गया।

FIFA-2006

2006 फीफा विश्व कप (9 जून - 9 जुलाई)

विजेता: इटली
विश्व कप का 18वां संस्करण 2006 में जर्मनी में खेला गया। 9 जून से 9 जुलाई तक चले विश्व कप में 64 मैच खेले गए और कुल 147 गोल हुए। इस बार कुल आठ देश ऐसे थे जिन्होंने पहली बार विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया था। क्वार्टर फाइनल में जर्मनी, अर्जेंटीना, इटली, यूक्रेन, इंग्लैंड, पुर्तगाल, ब्राजील और फ्रांस की टीमों ने प्रवेश किया। लेकिन सेमीफाइनल तक मेजबान जर्मनी, इटली, पुर्तगाल और फ्रांस ही पहुंचने में सफल रहे। फाइनल में इटली और फ्रांस के बीच खिताबी जंग छिड़ी। इटली ने चौथी बार खिताब अपने नाम किया। जर्मनी के मीरोस्लाव क्लोस को गोल्डन बूट के अवार्ड से नवाजा गया।

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आकर्षक होते हैं नशीली आंखों वाले

आकर्षक होते हैं नशीली आंखों वाले
आंखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसके बिना जीवन निरर्थक सा लगता है। आंखें न सिर्फ चेहरे को सुंदरता प्रदान करती हैं अपितु हर दिखने वाली वस्तु की सूचना मस्तिष्क तक पहुंचाती है। समुद्र शास्त्र के विद्वानों का मानना है कि मस्तिष्क के अंदर जो चल रहा होता है उसका प्रतिबिंब आंखों में देखा जा सकता है। शरीर लक्षण विज्ञानियों के अनुसार आंखों के कई भेद होते हैं जैसे-


कमल नयन- कमल के पत्ते के समान ये नेत्र आदर्श नेत्र कहलाते हैं। इसकी पुतलियों का रंग गहरा काला या भूरा होता है। कमल नयन वाले जातक जातक सभ्य, अध्ययनशील, भोगी, सभी सुखों को प्राप्त करने वाले, उद्यमी तथा सबका दिल जीतने वाले होते हैं। ऐसी महिलाएं मन मोहने तथा सबको आकर्षित करने वाली होती है। इनमें नेतृत्व क्षमता भी होती है।
नशीली आंखें- नशीली आंखों वाला जातक हर समय नशे में दिखता है लेकिन ऐसा होता नहीं है। यह आंखें सामान्य से कुछ कम खुलती हैं। इसकी पुतलियों का रंग काला होता है। ऐसे जातक शातिर तथा अपनी बात मनवाने वाले होते हैं। इनके दिमाग में हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है। यह स्वार्थी, मद्यप्रिय तथा लालची भी होते हैं। ऐसे नेत्रों वाली आकर्षक, महिला झगड़ालू, अधिक बोलने वाली तथा लालची होती है।
मृगनयनी आंखें- ऐसी आंखें गोल व बड़ी होती हैं। ऐसी आंखें सिर्फ महिलाओं की होती है। इनका रंग भूरा या नीला होता है। ऐसे जातक जीवन में जो चाहते हैं वह प्राप्त करते हैं। सभी क्षेत्रों में इन्हें सफलता मिलती है। उदार, संवेदनशील, स्नेही तथा चंचलता इनका मुख्य गुण होता है।

दुकानों पर क्यों टांगते हैं नींबू-मिर्च

दुकानों पर क्यों टांगते हैं नींबू-मिर्च?
हम अक्सर देखते हैं दुकानों और बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर व्यापारी नींबू-मिर्च टांगकर रखते हैं। ऐसा केवल अपने व्यापार को बुरी नजर से बचाने के लिए किया जाता है। सवाल यह है कि नींबू और मिर्च में ऐसा क्या होता है जो नजर से बचाता है?
दरअसल इसके दो कारण प्रमुख हैं, एक तंत्र-मंत्र से जुड़ा है और दूसरा मनोविज्ञान से। माना जाता है कि नींबू, तरबूज, सफेद कद्दू और मिर्च का तंत्र और टोटकों में विशेष उपयोग किया जाता है। नींबू का उपयोग अमूूमन बुरी नजर से संबंधित मामलों में ही किया जाता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण है इनका स्वाद। नींबू खट्टा और मिर्च तीखी होती है, दोनों का यह गुण व्यक्ति की एकाग्रता और ध्यान को तोड़ने में सहायक हैं।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हम इमली, नींबू जैसी चीजों को देखते हैं तो स्वत: ही इनके स्वाद का अहसास हमें अपनी जुबान पर होने लगता है, जिससे हमारा ध्यान अन्य चीजों से हटकर केवल इन्हीं पर आकर टिक जाता है। किसी की नजर तभी किसी दुकान या बच्चे पर लगती है जब वह एकाग्र होकर एकटक उसे ही देखे, नींबू-मिर्च टांगने से देखने वाले का ध्यान इन पर टिकता है और उसकी एकाग्रता भंग हो जाती है। ऐसे में व्यापार पर बुरी नजर का असर नहीं होता है।

पहले ये समझें कि हम क्या हैं

पहले ये समझें कि हम क्या हैं
दुनिया में ऐसे खो जाना कि फिर खुद की भी सुध नहीं रहे, ऐसा अधिकतर लोगों के साथ होता है। हम दुनिया की भागमभाग में खुद के लिए समय निकालना भूल जाते हैं। कई बार अकेले में बैठकर विचार भी करें कि हम क्या थे और अब क्या हो गए हैं। जब तक खुद को नहीं पहचानेंगे तब तक अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच पाएंगे। फिर खोज अगर अध्यात्मिक जीवन की हो तो यह और ज्यादा जरूरी हो जाता है। मनुष्य के मन की आदत हो जाती है कि वह उठापटक करता रहे, दौड़भाग में लगा रहे और आपाधापी में उलझ जाए। मन की सारी रुची भागने में है। इसीलिए जब हम मन के कहने पर चलते हैं तो संसार की वस्तुओं के पीछे भागते हैं। कुछ समय बाद जब संसार से ऊब जाते हैं तो भगवान की ओर भागने लगते हैं। मन के भागने की वृत्ति बनी ही रहती है। मन का काम दौड़ाना है और वह दौड़ाता रहता है भले ही दिशा बदल जाए, जबकि अध्यात्म कहता है रुक जाओ। जब तक थोड़ा ठहरेंगे नहीं ईश्वर से मुलाकात नहीं होगी। सुग्रीव ने श्रीराम से वादा किया था कि बाली का वध हो जाने के बाद तथा मेरे राजा बनने के बाद मैं सीताजी की खोज के लिए वानर भेजूंगा लेकिन वह यह काम भूल गया। तब हनुमानजी ने सुग्रीव को समझाया था कि आप थोड़ा भीतर उतर कर चिंतन करें। पहले आप राज्य पाने के लिए दौड़ रहे थे और अब आप उसी वृत्ति के कारण भगवान का काम नहीं करके डर रहे हैं। आपका मन कुल मिलाकर आपाधापी में है। दुनिया में यदि पाना है तो दौड़ना पड़ेगा और दुनिया बनाने वाले को यदि पाना है तो हो सकता है दौड़ते हुए उसे खो ही दें। दोनों के समीकरण अलग हैं। दौड़े तो ही संसार मिलेगा और अध्यात्म में दौड़े तो शायद ईश्वर को खो देंगे। इसलिए थोड़ा रुकना सीखें। रुकने का अर्थ है आप जैसे हैं वैसे ही परमात्मा को समर्पित हो जाएं। यह सोचना कि पहले साधु बन जाएं और फिर भगवान के पास जाएं तो हो सकता है हम भटक जाएंगे। सबसे पहले जैसे हो वैसे ही रुक जाओ। सुग्रीव को यह बात समझ में आई और वे दोबारा श्रीराम तक पहुंचे। हम जैसे हैं उसे जानने के लिए ध्यान, मेडिटेशन एक सही क्रिया है। सुग्रीव के जीवन में हनुमान की उपस्थिति का अर्थ ही मेडिटेशन था।

पहले भीतरी दुनिया को समझे

पहले भीतरी दुनिया को समझे, फिर बाहरी दुनिया को
दुनिया में अपना महत्व साबित करने का तरीका है कि पहले हम खुद का महत्व समझें। इसके लिए जरूरी है स्वयं के भीतर उतरा जाए, अपने आप से साक्षात्कार किया जाए। हम समझें कि हममें क्या खुबियां और क्या खामियां हैं। इसके बिना हम हमेशा दुनिया से शिकायत ही करते रहेंगे।

सबका अपना अपना महत्व है। हम भी जरूरी हैं दुनिया के लिए यह एहसास सबको अच्छा लगता है। महत्वपूर्ण होना कौन नहीं चाहता। दुनिया में जितनी भौतिक प्रगति हुई है उसके पीछे मनुष्य का यह भाव भी रहा है मुझे महत्वपूर्ण माना और समझा जाए। पर आदमी केवल महत्ता पर टिक गया, वह यह भूलता ही जा रहा है कि उसकी एक सत्ता भी है, भीतरी सत्ता। असंयम की अति के कारण हमने अपने ही भीतर मुड़ना छोड़ दिया। बाहर हम महत्वपूर्ण माने जाएं इस शैली के कारण हमारी महत्ता तो कायम हो गई पर निर्भयता चली गई। अच्छे-अच्छे महत्वपूर्ण लोग भीतर से भयभीत

भीतर और बाहर क्या घट रहा है

भीतर और बाहर क्या घट रहा है ध्यान रखें
भागमभाग भरी दुनिया में हम दूसरों को याद रखना तो दूर कई बार खुद को ही भूल जाते हैं। ऐसे में सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि हम पर, हमारे अस्तित्व पर कोई और ही कब्जा कर लेता है। ये दुनिया खो जाने के लिए नहीं है, इसमें रहें तो खुद के चौकीदार बनकर ताकि आपके भीतर और बाहर जो भी हो रहा है उसका आपको खयाल रहे।

परमात्मा को सदैव याद रखना अच्छी बात है। जीवन में ऐसे अवसर आते हैं कि हम भगवान को भूल भी जाते हैं, इसमें भी उतना खतरा नहीं होगा जितना तब होगा जब हम स्वयं को भूल जाते हैं। अपने को याद रखने का अभ्यास सतत् बनाए रखना होगा। जैसे ही हम खुद को भूलते हैं, काम, क्रोध, मद और लोभ अपना कब्जा हमारे ऊपर जमा लेते हैं। खुद को भूला हुआ आदमी बेहोश जैसा होता है। दुगरुण जानते हैं कि यह व्यक्ति होश में नहीं है कब्जा जमा लो, यह कोई प्रतिकार नहीं करेगा।अपने प्रति होश बना रहे, इसके लिए स्वयं के साक्षी होने का अभ्यास करना होगा। रोज, रोज, निरन्तर यह भाव जगाए रखना होगा कि मैं स्वयं-साक्षी हूं।

सफलता

सफलता के तीन आधार शार्ट-क्विक और परफेक्ट
हमारी जीवनशैली में दो-तीन बातें इतनी गहराई तक बैठ गई हैं कि हमारी सारी कार्यशैली, तरक्की और सफलता इससे प्रभावित हो रही है। ये आदतें हैं काम को टालना, छोटी बातों को भी बढ़ाचढ़ा कर बताना और पूरा जानते हुए भी अधूरा काम ही करना। बस ये ही हमारी राह के रोड़े हैं। आज प्रबंधन सिखाता है हर काम संक्षेप में, तेजी से लेकिन पूर्णता के साथ किया जाए।
अमेरिका जाने पर वहां लोग बताते हैं कि यहां की प्रगति के तीन कारण हैं। यहां हर काम लोग बहुत शॉर्ट, क्विक और परफेक्ट करते हैं। हम भारतीय इसमें चूक जाते हैं। शॉर्ट में हमारी रुचि कम ही रहती है चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना हमारी शान में आ गया है। क्विक यानी तेजी से काम का परिणाम देने में हम इसलिए चूक जाते हैं कि करते हैं, क्या जल्दी है इसे भजन की तरह कई लोगों ने जीवन में उतार लिया है। धर्म की आड़ में पुनर्जन्म को मानकर हम जनम-जनम तक इन्तजार कर लेते हैं। कार्य में आलस्य इसी मानसिकता से पैदा होता है। परफेक्ट के मामले में भी हमारा सोचना रहता है काम हो गया, बस काफी है जबकि यह शतप्रतिशत सही परिणाम का जमाना है। हम कई बातों को सतही ले लेते हैं जबकि अब गहराई में उतरकर समझने का वक्त है। भारतीय संस्कृति इस मामले में बहुत धनी है कि उसके पास कई ऐसे शास्त्र, साहित्य हैं जो शॉर्ट, क्विक, परफेक्ट की पूर्ति करते हैं।
इनमें से एक है तुलसीदासजी की लिखी श्रीहनुमानचालीसा। इसका प्रत्येक शब्द जीवन- प्रबंधन के हर आयाम को स्पर्श करता है। इसमें हनुमानजी की योग्यता, दक्षता और समर्थता को बहुत ही शॉर्ट, क्विक और परफेक्ट के साथ तुलसीदासजी ने उतारा है। तीन मिनट में पूरी होने वाली ये पंक्तियां हर धर्म के संदेश की सुगंध लिए हैं। इसी स्तंभ में हर मंगलवार हम इसकी पंक्तियों से गुजर कर उस सुख को प्राप्त करने के सूत्र प्राप्त कर सकेंगे जो शांति भी दिलाएंगे। और सुख के साथ यदि शांति नहीं है तो सफलता अधूरी है।
ऐसे जीएंगे तो नहीं रहेगा मौत का डर
जीवन में जितना रस है मौत शब्द उतना ही भयानक। संसार में संभवत: कोई ही ऐसा हो जिसे मौत का डर न सताता हो। दरअसल डर का कारण मौत या उसके आने का तरीका नहीं, बल्कि हमारे जीना का तरीका है। हम संसार में संसार के होकर रह जाते हैं। इससे आगे की कभी नहीं सोचते इस कारण संसार छूटने का भय बना रहता है। संसार को निर्लिप्त भाव से भोगिए फिर मृत्यु से भय नहीं होगा।

जीवन में एक अज्ञात भय ऐसा है जो ज्ञात भी है, परन्तु है सबसे बड़ा और वह है मृत्यु का भय। उम्र, मौत और जिन्दगी इन तीनों के मामले में संसारी और साधु का फर्क पकड़ें तो भयमुक्त हुआ जा सकता है। संत कितना जिए यह महत्वपूर्ण नहीं होता, कैसे जिए यह उपयोगी होता है। देह त्यागने के पूर्व बुद्ध ने जो अंतिम वाक्य कहे थे उसे समझा जाए। च्च्हंद दानि भिक्खवे आमंत यामि वो, वह धम्मा संरवारा अप्पमादीन संपादे था इतिज्‍ज हर वस्तु नाशवान है, जीवन का संपादन अप्रमाद के साथ करो। आलस्य के साथ वासना का समावेश हो जाए तो प्रमाद शुरू होता है। बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को अपनी अंतिम क्रिया के लिए भी विस्तार से समझा दिया था। मौत को उन्होंने उत्सव बनाया।

प्रेम तो शक्ति है

प्रेम तो शक्ति है, उसे अपनी कमजोरी न बनने दें ...
हमारी कमजोरियां हमें न सिर्फ नुकसान पहुंचाती हैं बल्कि पतन भी करा देती हैं। श्रीराम के पिता राजा दशरथ की कमजोरी रानी कैकेयी थीं। राजा दशरथ ने कोप भवन में बैठी रानी को मनाने के लिए ऐसे वचन कहे थे- प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें॥ यानि कि हे प्रिये, मेरी प्रजा, कुटुम्बी, सारी सम्पत्ति, पुत्र और यहां तक कि मेरे प्राण ये सब तेरे अधीन हैं। तू जो चाहे मांग ले पर अब कोप त्याग, प्रसन्न होजा। यह राजा की कमजोरी थी। कैकेयी की कमजोरी उनकी दासी मंथरा थी जो कि स्वभाव से ही लालची थी। करइ बिचारू कुबुद्धि कुजाती। होइ अकाजु कवनि बिधि राती॥ वह दुर्बुद्धि, नीच जाति वाली दासी विचार करने लगी कि किस प्रकार से यह काम रातोंरात बिगड़ जाए। श्रीराम के राजतिलक के पूर्व कैकेयी ने मंथरा की बात सुनी, उसके बहकावे में आ गईं और दशरथ से भरत के लिए राजतिलक तथा श्रीराम के लिए वनवास मांग लिया। अपनी कमजोरी के वश में आकर कैकेयी ने रामराज्य का निर्णय उलट दिया और तो और, दासी का सम्मान करते हुए कहा - करौ तोहि चख पूतरि आली। यदि मेरा यह काम होता है, मैं तुझे अपनी आंखों की पुतली बना लूंगी। मनुष्य अपनी ही कमजोरी के वश में होकर गलत निर्णय लेता है और इसी कमजोरी को पूजने लगता है।

श्रीरामचरितमानस में एक प्रसंग आता है कि जब श्रीराम वनवास चले गए, दशरथ का निधन हो गया और भरत तथा शत्रुघ्न अपने ननिहाल से लौटे तब मंथरा पर शत्रुघ्न ने प्रहार किया था। हुमगि लात तकि कू बर मारा। परि मुह भर महि करत पुकारा ''उन्होंने जोर से कुबड़ पर एक लात जमा दी और वह मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी।'' इसमें प्रतीक की बात यह छिपी है कि जो कमजोरी पर प्रहार करता है वह शत्रुघ्न कहलाता है और हमें अपने शत्रु का नाश ऐसे ही करना चाहिए। लोभ हमारा सबसे बड़ा शत्रु है, कमजोरी है इसे बक्शना नहीं चाहिए। वरना जो लोग कमजोरियों को ढोते हैं एक दिन वह कमजोरी उनको पटकनी दे देती है।

काम कितना भी कठिन क्यों न हों

काम कितना भी कठिन क्यों न हों, अगर.....
सबसे अच्छी जीवनशैली कौनसी? दुनिया में रहते हुए कभी हम जीने के एक ढंग से ऊब जाते हैं तो दूसरी जीवनचर्या में प्रवेश कर जाते हैं। चेंज के चक्कर में मनुष्य चकरघिन्नी हो जाता है बस। आइए जीने का एक तरीका यह भी अपनाया जा सकता है। उसे देखकर जीएं जो सबको देख रहा है। इसे सीधी भाषा में कह सकते हैं भक्त बन जाएं और अपने पुरुषार्थ, आत्म विश्वास को भगवान के भरोसे छोड़ दें। परिश्रम अपना हो परिणाम उसका रहे। इसका सीधा सा अर्थ है श्रम हम करें और फल परमात्मा पर छोड़ दें। अध्यात्म में इसे ही निष्कामता कहा गया है। ऐसा सुनकर लोगों को लगता है कि यह तो बड़ी अकर्मण्यता हो जाएगी।
भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म को लेकर वैसे भी लोग कहते हैं कि सब भगवान भरोसे, भाग्य भरोसे चलता है। कुछ लोग करते-धरते नहीं, परंतु धर्म ने ऐसा कभी नहीं कहा, अध्यात्म यह नहीं कहता, भगवान् ने भी यह नहीं कहा कि मेरा पूजन करने वाला अकर्मण्य बैठ जाए। भक्त का अपना कर्मयोग होता है। भक्ति जीवन में उतरते ही प्रत्येक कृत्य, हर बात के अर्थ ही बदल जाते हैं।

जीवन सफर है

जीवन सफर है, इसकी गति सधी हुई रखें
सामान्य सी कहावत है कि जीवन एक सफर है। इस सफर में चढ़ाई भी है और ढलान भी। हम किसी भी रास्ते पर हो, सफर में गति सधी हुई हो तो ज्यादा आसानी होती है। हम जब ऊपर चढ़ रहे हों तो सारी ताकत मंजिल की ओर लगाने में खर्च होती है लेकिन ध्यान यह भी रखना पड़ता है कि कोई ताकत उतनी ही तेजी से हमें नीचे भी खींच रही है, लेकिन जब हम नीचे की ओर जा रहे होते हैं तब ऐसी कोई शक्ति नहीं होती जो हमें ऊपर की ओर उठाए। बस यहीं हमारी गति सबसे ज्यादा सधी हुई होनी चाहिए।
विज्ञान का कायदा है कि ऊपर चढ़ने में अलग ताकत लगती है और नीचे उतरने में अलग। लेकिन फोर्स दोनों ही स्थिति में होता है। जब हम ऊपर चढ़ रहे होते हैं तो ताकत इस बात के लिए लगाना पड़ती है कि हर हालत में लक्ष्य पर पहुंच जाएं, थक न जाएं। जब नीचे उतर रहे होते हैं तो ताकत तब भी लगाना पड़ती है लेकिन उस समय मामला होता है लड़खड़ा न जाएं, जल्दबाजी न हो जाए, गिर जाने के मौके उतरते समय ज्यादा रहते हैं। ऊपर जाने में थकने का और नीचे आने में गिरने का खतरा बना रहता है। इसे जीवन की यात्रा से जोड़कर देखा जाए। ऊपर चढ़ना ऐसा है जैसे संसार में ही जीना। भौतिकता की यात्रा में ऊपर जाने को ही महत्व माना जाता है। यहां जो जितना ऊपर है उसे उतना ही सफल घोषित किया जाता है। इस शीर्ष पर अपनी अलग थकान होती है।
ऊपर चढ़े हुए लोगों की थकान का दूसरा नाम अशांति भी है। इसी तरह ढलान की यात्रा अपने भीतर उतरने की आध्यात्मिक यात्रा जैसा है। इसमें जो ताकत लगती है वह साधना है। इस दौरान जब लड़खड़ाएं तो भक्ति मार्ग में पतन समझ लें। उतरते समय फिर भी एक अजीब सी सुविधा लगती है यही आनंद है। संत-फकीरों को ढलान पर संभलकर उतरने की कला आती है। उतार पर उनकी तैयारी और अधिक गहरे जाने की रहती है। ताकत दोनों में लगेगी लेकिन यह ताकत ऊपर और नीचे की यात्रा के संतुलन के लिए लगाई जाए। यात्रा दोनों प्रकार की करना है। बस विवेक रूपी ताकत से तय करते रहना है, कब कौन सी, कितनी यात्रा की जाए।