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Thursday, July 15, 2010

भीतर और बाहर क्या घट रहा है

भीतर और बाहर क्या घट रहा है ध्यान रखें
भागमभाग भरी दुनिया में हम दूसरों को याद रखना तो दूर कई बार खुद को ही भूल जाते हैं। ऐसे में सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि हम पर, हमारे अस्तित्व पर कोई और ही कब्जा कर लेता है। ये दुनिया खो जाने के लिए नहीं है, इसमें रहें तो खुद के चौकीदार बनकर ताकि आपके भीतर और बाहर जो भी हो रहा है उसका आपको खयाल रहे।

परमात्मा को सदैव याद रखना अच्छी बात है। जीवन में ऐसे अवसर आते हैं कि हम भगवान को भूल भी जाते हैं, इसमें भी उतना खतरा नहीं होगा जितना तब होगा जब हम स्वयं को भूल जाते हैं। अपने को याद रखने का अभ्यास सतत् बनाए रखना होगा। जैसे ही हम खुद को भूलते हैं, काम, क्रोध, मद और लोभ अपना कब्जा हमारे ऊपर जमा लेते हैं। खुद को भूला हुआ आदमी बेहोश जैसा होता है। दुगरुण जानते हैं कि यह व्यक्ति होश में नहीं है कब्जा जमा लो, यह कोई प्रतिकार नहीं करेगा।अपने प्रति होश बना रहे, इसके लिए स्वयं के साक्षी होने का अभ्यास करना होगा। रोज, रोज, निरन्तर यह भाव जगाए रखना होगा कि मैं स्वयं-साक्षी हूं।

मेरी चौकीदारी इतनी तगड़ी है कि न तो भीतर का सहज आनन्द बाहर जा सकता है और नहीं बाहर की परेशानी भीतर आ सकती है। प्रतिपल अपना अवलोकन आपको शांत करेगा। जितना हम खुद को नहीं भूलते हैं उतना ही हम अपने से जुड़ी बातों का सही इस्तेमाल भी करना सीख जाते हैं। यदि हमारे पास ज्ञान आता है तो हम सक्षम रहते हैं कि उसे पूरा आचरण में उतार लें। हम पवन के छोटे से झोंके, फूल की बारीक खुश्बू, प्रकृति के छोटे से छोटे अंश को भी पूरा का पूरा जीने लगते हैं। मनुष्यों के बीच रहने पर आप होते तो स्वयं-साक्षी हैं, लेकिन प्रत्येक को लगता है आप उन्हीं के लिए जी रहे और वे भी आपके लिए महत्वपूर्ण हैं। अपना अवलोकन करते रहना दूसरों की नजर में अपनेपन की खूबी बन जाता है। आज के भागमभाग और निजहित के इस दौर में यदि दूसरे यह महसूस कर लें कि आप उनके हैं तो यह बड़ी उपलब्धि होगी।

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